मुझे एकांत पसंद है, अकेलापन नहीं।।
*समरूप नहीं है, पर्याय नहीं हैं, समभाव नही हैं ,एकांत और अकेलापन। एकांत की खोज करनी पड़ती है अकेलापन समाहित है मन की व्यथा में पूर्व निर्धारित रूप में।एकांत शब्द नहीं अवस्था है,खुद को जानने की व्यवस्था है , स्वयं में पूर्ण है,अकेलापन व्यथा है ,दुख है ,अभाव है, अपूर्ण है।
*पर्वतों की तलहटी में खुद से अपना अस्तित्व बनाता एक बीज का पेड़ में बदलना एकांत है, सदाबहार वृक्षों के झुंड में दबा हुआ,ऊपर उठने की कोशिश करता हुआ फलता फूलता वृक्ष,अकेलापन है।
* अंधेरे रास्तों में प्रदीप्ति बिखेरता छोटा सा दीपक एकांत है, चकाचौंध भरी रोशनी की गलियों में अंत मे जलता हुआ एक चिराग अकेलापन।
अंततः एकांत पूर्ण हैं, अकेलापन अपूर्ण….अधूरा।