जिंदगी,,,, थमी सी है

सब हक मिल जाए फिर भी एक कमीं सी है,
क्यूँ होठों पर चीख दबी और आंखों में नमीं सी है,
किरदार कई हैं तेरे पर मंच तो वही है ,
फिर क्यूँ,हर किरदार में तू सहमी सी है,
वक्त के साथ बेतरतीब दौड़ रही है ,बस दौड़ रही है,
जिंदगी- फिर क्यूँ तू मंझधार में आकर थमी सी है।

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